कहते हैं बाप बेटी का रिश्ता अनमोल है
कौन जनता है माँ के लिए बेटी का क्या मोल होता है
बाबुल का प्यार बाबुल का दर्द बस यही सुनते हैं
माँ के दर्द को कोई क्यों नही समझता है
अपनी परछाई देखती है बेटी में वो
अपने हिस्से की खुशियाँ वार्ती है वो
कभी किसीसे नही कहती पर बेटी के लिए डरती भी है वो
जुदाई का वो दर्द सबसे ज़्यादा माँ ही तो जानती है
कहते हैं बेटी खुशियों की बहार लाती है
तो जाते जाते घम का सैलाब भी दे जाती है
कोई नही जनता माँ के दिल का वो दर्द जब बेटी नाराज़ हो जाती है
नाज़ुक फूल की तरह जिसे सींचा वो एक दिन पराई हो जाती है
काश खुदा ने बेटियों को पराया नही अपना बनाया होता
काश ये कन्यदान नही कन्या विवाह का रिवाज़ होता
बस यही एक आवाज़ है हर माँ के दिल की
बेटी रहे जहाँ भी सारी खुशियाँ हो उसकी