भारत माता की गोद में जब भी कोई आँच आई है, उसके वीर सपूत सीना ताने खड़े हो गए हैं। ऑपरेशन सिन्दूर सिर्फ़ एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी — यह भारत के साहस, संकल्प और आत्मसम्मान की जीवंत मिसाल थी। यह गीत उन जांबाज़ सैनिकों को समर्पित है, जिन्होंने आतंक के अंधकार पर न्याय और शौर्य की रौशनी फैलाई।
“सिन्दूर के वीर“ एक श्रद्धांजलि है उन योद्धाओं को, जो अपने खून से इस मिट्टी को सिंचित करते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ गर्व और शांति से जी सकें।
भोर की ख़ामोशी में निकले वो वीर,
रगों में बहता था तिरंगे का नीर।
हर माँ की आँखों के आँसू के वास्ते,
सीना ताने खड़े थे, धरती के रास्ते।
सिन्दूर के वीर, भारत के लाल,
आतंक पर चला उनका पहला धमाल।
राख से उठी थी ज्वाला की लहर,
भारत बोला — अब ना कोई डर।
जय हिंद की गूंज थी, सिन्दूर का प्रण,
वीर चले लेकर धर्म और मन।
ये सिर्फ़ अभियान नहीं, माँ का है मान,
हर कण में बसा उनका बलिदान।
ना कोई डर, ना कोई पछतावा,
बस न्याय का था आँखों में दावा।
गूंजे पर्वत, काँपे ज़मीं,
दुश्मन की रूह तक हिल गई कहीं।
ये युद्ध नहीं था शौर्य का गीत,
ये था अमन का सबसे बड़ा मीत।
सिन्दूर के वीर, भारत के लाल,
आग सी रगों में, हौसलों के भाल।
हर क़दम पे भरोसे की थी रेखा,
देश ने फिर से लिखा गौरव लेखा।
भारत खड़ा है — स्वाभिमान की शान,
ऑपरेशन सिन्दूर — अमर बलिदान।
एक दीया जलाओ, शीश झुकाओ,
उनके लिए जो मृत्यु को भी अपनाओ।
हर दिल, हर सीमा, हर एक ओर,
गूंजेगा नाम… सिन्दूर हमेशा और।